दिनांक – 31-08-2025
समाज एवं संस्कृति अध्ययन केंद्रके द्वारा भारत-स्व-हिन्दुत्व विषय पर एम.जी.आई.जी.एस.एस.जयपुर में कार्यशाला का आयोजन किया गया। बैठक मे वैचारिक समूह के संगठन इतिहास संकलन समिति, विज्ञान भारती, प्रज्ञा प्रवाह, अधिवक्ता परिषद् , अखिल भारतीय साहित्य परिषद, संस्कार भारती , पाथेय कण, विश्व संवाद केंद्र से जुड़े अध्येता उपस्थित रहे।

प्रथम सत्र
कार्यशाला के प्रथम सत्र में प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय टोली सदस्य डॉ सदानन्द सप्रे जी का पाथेय प्राप्त हुआ। उन्होंने भारत-स्व-हिन्दुत्व विषय पर उद्बोधन प्रस्तुत किया जिसके निम्न मुख्य बिन्दु है:
- वर्तमान समय मे सही विमर्श स्थापित करने के लिए वैचारिक अध्येताओ की आवश्यकता है।
- भारतीय दर्शन में महिलाओं का स्थान कितना सशक्त रहा है उसका प्रतिपादन हमारे अध्ययन मे आवश्यक है।
- अध्येताओं को चर्चा के विषयों पर प्रमाण सहित तथ्य प्रस्तुत करने चाहिए।
- भारतीय शास्त्रों में स्वत्व के बोध का सतत् अध्ययन करना चाहिए।
- भारतीय शोध परम्परा को आज के परिपेक्ष्य में समझने की आवश्यकता है।
- नेरटिव के विषयों पर गम्भीर अध्ययन करना चाहिए ।
- सम्बन्धित विषय पर पर्याप्त मौलिक सामग्री एकत्रित करनी चाहिए ।
प्रथम सत्र में प्रो.सदानन्द सप्रे जी ने समेकित रूप से तीन विषयों पर अध्येताओं का विमर्श की दृष्टि से मार्गदर्शन किया। सत्र का सञ्चालन अध्ययन केन्द्र के संयोजक डॉ.अमित झालानी ने किया। इस सत्र में 40 अध्येता उपस्थित रहे। प्रथम सत्र के अन्तिम सोपान में “सांस्कृतिक प्रवाह” शोध पत्त्रिका का विमोचन किया गया।

द्वितीय सत्र – पत्र वाचन
कार्यशाला के द्वितीय सत्र में लोकदेवता विषय पर पांच अध्येताओं ने पत्रवाचन किया। विभिन्न संगठनों से निम्न विषयों पर पत्रवाचन किया गया।
| संघठन | लोकदेवता | वक्ता |
| इतिहास संकलन | बाबा रामदेव जी | डॉ. जयंतीलाल जी खंडेलवाल |
| प्रज्ञा प्रवाह | करणी माता | डॉ. मीना रानी |
| समाज एवं संस्कृति अध्ययन केंद्र | जाम्भो जी | श्री पुरुषोत्तम जी |
| साहित्य परिषद | गोगा जी | श्री राजेंद्र जी शर्मा |
| संस्कार भारती | पाबू जी | श्री नारायण सिंह जी राठौड़ |

तृतीय सत्र :
तृतीय सत्र में डॉ हेमन्त सेठिया जी ने अध्येताओं को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा की प्रत्येक संघठन के लिए विमर्श के विषयों को निर्धारण होना चाहिए। विमर्श केन्द्र और अन्य संघठनों में विषयों को लेकर समन्वय हो इसको लेकर निम्न बिन्दुओ पर विस्तृत चर्चा की गयी।
- भारतीय विचार को सर्वव्यापी और सर्वस्पर्शी बनाना है।
- वैचारिक समन्वय करना आवश्यक है ।
- वर्तमान परिप्रक्ष्य में हिन्दुत्व को सप्रमाण परिभाषित करने की आवश्यकता है।
- वैचारिक विमर्श के लिए सभी संगठनों को सामूहिक एक समन्वित प्रयास करने चाहिए।

