समाज एवं संस्कृति अध्ययन केंद्र राजस्थान

Sheetal Paliwal

जनजाति परम्पराओं को न मानने पर क्यों मिलें आरक्षण का लाभ ?

जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने इन वनवासियों को स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेने से रोकने के लिए इन्हें पिछड़ा बनाने के प्रयास किए। अंग्रेजों ने वर्ष 1891 की जनगणना में देश भर में रहने वाले वनवासियों के लिए ‘tribe’ शब्द दिया । स्वाधीनता के बाद जब संविधान निर्माण हुआ तो इसी ट्राइब शब्द का संदर्भ लेते हुए इन्हे संवैधानिक रूप से ‘अनुसूचित जनजाति ‘/scheduled tribe की श्रेणी में रखा ।

जनजाति परम्पराओं को न मानने पर क्यों मिलें आरक्षण का लाभ ? Read More »

कितना विश्वसनीय है ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI)!

दुनिया में भारत अनाज का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। देश की आवश्यकता से अधिक यहाँ अन्न उत्पादन होता है। इसके पास व्यापक खाद्य आपूर्ति प्रणाली, मजबूत सरकारी नीतियाँ और वंचितों के लिए मुफ्त खाद्यान्न योजनाएं एवं वितरण प्रणाली है।
पिछले 10 वर्षों में भारत की प्रति व्यक्ति आय दोगुनी से भी ज़्यादा हो गई है।

कितना विश्वसनीय है ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI)! Read More »

शिव-शक्ति आराधना के लिए भील जनजाति करती है गवरी नृत्य

राजस्थान के दक्षिणी भाग (उदयपुर,राजसमंद, भीलवाड़ा, चित्तौड़), जिसे सममिलित रूप से मेवाड़ कहा जाता हैं। यहाँ मुख्य रूप से भील जनजाति निवास करती हैं । मेवाड़ की भील जनजाति द्वारा राजस्थान का सुप्रसिद्ध लोकनृत्य गवरी किया जाता है।

शिव-शक्ति आराधना के लिए भील जनजाति करती है गवरी नृत्य Read More »

संवर्धिनी- महिला विषयक भारतीय दृष्टिकोण

भारतीय जीवन दृष्टि मानव जीवन के बारे में है। मानव यानि मनुष्य, जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों समाहित हैं। हमारे शास्त्रों में जो भी कहा गया है, वह मनुष्य मात्र के लिए कहा गया है, स्त्री और पुरुष को अलग देखना भारत की दृष्टि नहीं। हमारे यहॉं शिव और शक्ति एक हैं, दोनों मिलकर अर्द्धनारीश्वर बनते हैं।

संवर्धिनी- महिला विषयक भारतीय दृष्टिकोण Read More »

सुशासन की प्रतिमूर्ति, पुण्यश्लोका, लोकमाता अहिल्याबाई

महारानी अहिल्याबाई होलकर का जीवन भारतीय इतिहास में महिला नेतृत्व , समर्पण और जनसेवा का अनुपम उदाहरण है। वे न केवल इंदौर राज्य की रानी थीं, बल्कि भारतीय नारी शक्ति और आदर्श नेतृत्व की प्रतीक भी थीं।

सुशासन की प्रतिमूर्ति, पुण्यश्लोका, लोकमाता अहिल्याबाई Read More »

समाज में हो स्व का गौरव

भारत के वैभवशाली और गौरवशाली इतिहास का यह एक लंबा कालखंड है, तो उसके साथ-साथ परतंत्रता का भी एक हजार वर्ष का काला अध्याय है। विदेशी आक्रमणों व संघर्षों के शिकार होने के कारण हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, वैज्ञानिक, राजनीतिक व्यवस्था एवं शिक्षा प्रणाली पर गहरी चोटे पहुंची या यूं कह सकते हैं कि योजना पूर्वक पहुंचाई गई।

समाज में हो स्व का गौरव Read More »

हिन्दुत्व के शाश्वत सिद्धांत

हिन्दुत्व, जो न केवल एक धार्मिक परंपरा है बल्कि एक गहन जीवन-दर्शन भी है, आज वैश्विक विमर्श का एक महत्वपूर्ण विषय बन चुका है। यह शब्द, सर्वकालिक एवं सर्वसामान्य होते हुए भी, समयानुकूल संदर्भ के साथ नए अर्थ और व्याख्याएं प्राप्त कर रहा है। बाकी सभ्यता, संस्कृतियों की तुलना में जब हम देखते हैं तो पाते हैं कि हिन्दू समाज जड़ नहीं है, प्रोग्रेसिव है इसलिए समय काल परिस्थिति के अनुसार फिर चिंतन करता है, आवश्यकता अनुसार परिवर्तन करता है और आगे बढ़ता है। इसीलिए यह दुनियाँ का सबसे प्राचीन धर्म होते हुए भी यह नित्य नवीन बना हुआ है।

हिन्दुत्व के शाश्वत सिद्धांत Read More »

क्या है भारतीय परिप्रेक्ष्य में राष्ट्र की अवधारणा

पहले वे लोग, जो कहते हैं कि भारत 1947 में जन्मा राष्ट्र है, जिसे अंग्रेजों ने बनाया और हमें सौंपा। उससे पूर्व यहाँ कुछ रियासतें थी और अलग अलग स्वायत्त राज्य थे। कुछ लोग अनजाने में कहते भी हैं “we are a nation in making” या “we are the youngest nation in the world” दूसरे वे लोग जो कहते हैं कि भारत एक राष्ट्र नहीं है, यह अनेक राष्ट्रों का समूह है। यहाँ विभिन्न राष्ट्रीयताएं बसती हैं। इसलिए “India is a subcontinent भारत उपमहाद्वीप है”। तीसरे वे लोग हैं, जो कहते हैं कि भारत एक राष्ट्र है, प्राचीन राष्ट्र है, सनातन राष्ट्र है। यह बात शास्त्र सिद्ध है, इतिहास सिद्ध है और अनुभव सिद्ध भी है।

क्या है भारतीय परिप्रेक्ष्य में राष्ट्र की अवधारणा Read More »