समाज एवं संस्कृति अध्ययन केंद्र राजस्थान

Culture

समाज में हो स्व का गौरव

भारत के वैभवशाली और गौरवशाली इतिहास का यह एक लंबा कालखंड है, तो उसके साथ-साथ परतंत्रता का भी एक हजार वर्ष का काला अध्याय है। विदेशी आक्रमणों व संघर्षों के शिकार होने के कारण हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, वैज्ञानिक, राजनीतिक व्यवस्था एवं शिक्षा प्रणाली पर गहरी चोटे पहुंची या यूं कह सकते हैं कि योजना पूर्वक पहुंचाई गई।

समाज में हो स्व का गौरव Read More »

हिन्दुत्व के शाश्वत सिद्धांत

हिन्दुत्व, जो न केवल एक धार्मिक परंपरा है बल्कि एक गहन जीवन-दर्शन भी है, आज वैश्विक विमर्श का एक महत्वपूर्ण विषय बन चुका है। यह शब्द, सर्वकालिक एवं सर्वसामान्य होते हुए भी, समयानुकूल संदर्भ के साथ नए अर्थ और व्याख्याएं प्राप्त कर रहा है। बाकी सभ्यता, संस्कृतियों की तुलना में जब हम देखते हैं तो पाते हैं कि हिन्दू समाज जड़ नहीं है, प्रोग्रेसिव है इसलिए समय काल परिस्थिति के अनुसार फिर चिंतन करता है, आवश्यकता अनुसार परिवर्तन करता है और आगे बढ़ता है। इसीलिए यह दुनियाँ का सबसे प्राचीन धर्म होते हुए भी यह नित्य नवीन बना हुआ है।

हिन्दुत्व के शाश्वत सिद्धांत Read More »

क्या है भारतीय परिप्रेक्ष्य में राष्ट्र की अवधारणा

पहले वे लोग, जो कहते हैं कि भारत 1947 में जन्मा राष्ट्र है, जिसे अंग्रेजों ने बनाया और हमें सौंपा। उससे पूर्व यहाँ कुछ रियासतें थी और अलग अलग स्वायत्त राज्य थे। कुछ लोग अनजाने में कहते भी हैं “we are a nation in making” या “we are the youngest nation in the world” दूसरे वे लोग जो कहते हैं कि भारत एक राष्ट्र नहीं है, यह अनेक राष्ट्रों का समूह है। यहाँ विभिन्न राष्ट्रीयताएं बसती हैं। इसलिए “India is a subcontinent भारत उपमहाद्वीप है”। तीसरे वे लोग हैं, जो कहते हैं कि भारत एक राष्ट्र है, प्राचीन राष्ट्र है, सनातन राष्ट्र है। यह बात शास्त्र सिद्ध है, इतिहास सिद्ध है और अनुभव सिद्ध भी है।

क्या है भारतीय परिप्रेक्ष्य में राष्ट्र की अवधारणा Read More »