समाज एवं संस्कृति अध्ययन केंद्र राजस्थान

दीन दयाल स्मारक, धानक्या

28 अप्रैल 2024  को समाज एवं संस्कृति अध्ययन केंद्र राजस्थान द्वारा कुछ अन्य युवा समूहों के साथ एकात्म मानव दर्शन की अवधारणा के प्रणेता , महान भारतीय दार्शनिक व चिंतक दीन दयाल उपाध्याय जी के स्मारक, धानक्या, जयपुर की विज़िट एवं एकात्म मानव दर्शन पर एक्सपर्ट टॉक का कार्यक्रम आयोजित किया गया।

धानक्या स्थित दीनदयाल स्मारक, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की स्मृति में बनाया गया है। धानक्या, राजस्थान का वह स्थान है, जहाँ 25 सितंबर 1916 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म हुआ था। यह स्थान उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, जहाँ उन्होंने अपने जीवन के प्रारम्भिक वर्ष बिताए, जो उनके विचारों और मूल्यों के विकास में सहायक रहा। पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय चिंतन परंपरा के एक महान विचारक, दार्शनिक और नेता थे। उन्होंने एकात्म मानवदर्शन प्रस्तुत किया, जो संतुलित और समावेशी विकास पर आधारित है और भारत के पारंपरिक मूल्यों को केंद्र में रखता है।

स्मारक में एक संग्रहालय है, जहाँ पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन और कार्यों को चित्रों, कलाकृतियों, और  एलईडी स्क्रीन्स के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। इसके साथ ही, एक पुस्तकालय और शोध केंद्र भी है, जहाँ भारतीय संस्कृति और पंडित जी के विचारों पर आधारित साहित्य उपलब्ध है, जो शोधकर्ताओं को आकर्षित करता है। नियमित रूप से शैक्षिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जो उनके विचारों का प्रचार करते हैं। स्मारक परिसर में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की प्रतिमा स्थापित है।

संवाद सत्र – एकात्म मानव दर्शन

व्यक्ति नहीं विचार थे पंडित जी

एकात्म मानव दर्शन पर आयोजित संवाद सत्र में विशेषज्ञ के रूप में शिक्षाविद डॉ. सुभाष कौशिक व चिंतक एडवोकेट देवेश बंसल उपस्थित थे। उन्होंने युवाओं से संवाद स्थापित करते हुए कहा कि भारत की चिति यानी ह्रदय में एकात्मता है। यहाँ किसी में कोई भेद नहीं है, व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज, समाज से राष्ट्र और इस प्रकार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड परस्पर पूरक एवं सहायक है। इस प्रकार साम्यवाद व पूंजीवाद से परे भारत का एकात्म मानव दर्शन इस विचार पर बल देता है कि अकेले व्यक्ति के विकास से विकास संभव नहीं है। भारत ने हमेशा ही चराचर जगत के विकास के बारे में सोचा है । सत्र में इस विचार की वर्तमान सन्दर्भ में व्याख्या की गई। मनोज कुमार ने अध्येताओं से वार्ता करते हुए कहा कि यह वही विचार है, जो आदिगुरु शंकराचार्य ने अद्वैत के माध्यम से,विवेकानंद ने वेदांत के माध्यम से समझाया था व महर्षि अरविन्द ने जिसकी आध्यात्मिक व्याख्या की थी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने उसी को सरल रूप में समाज के सामने प्रस्तुत किया। आर्थिक ,शैक्षिक ,सामाजिक व राजनितिक क्षेत्र में किस प्रकार एकात्मता का ध्यान रखना चाहिए यह भी उन्होंने बताया। उन्होंने कहा, वास्तव में पंडित जी एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक विचार थे। विचार जिसमें हमेशा व्यष्टि से परमेष्टि अर्थात नर से नारायण तक का चिंतन रहा।