अपने देश की बात करते समय हमें तीन तरह के विचार दिखाई पड़ते हैं।
- पहले वे लोग, जो कहते हैं कि भारत 1947 में जन्मा राष्ट्र है, जिसे अंग्रेजों ने बनाया और हमें सौंपा। उससे पूर्व यहाँ कुछ रियासतें थी और अलग अलग स्वायत्त राज्य थे। कुछ लोग अनजाने में कहते भी हैं “we are a nation in making” या “we are the youngest nation in the world”
- दूसरे वे लोग जो कहते हैं कि भारत एक राष्ट्र नहीं है, यह अनेक राष्ट्रों का समूह है। यहाँ विभिन्न राष्ट्रीयताएं बसती हैं। इसलिए “India is a subcontinent भारत उपमहाद्वीप है” ।
- तीसरे वे लोग हैं, जो कहते हैं कि भारत एक राष्ट्र है, प्राचीन राष्ट्र है, सनातन राष्ट्र है। यह बात शास्त्र सिद्ध है, इतिहास सिद्ध है और अनुभव सिद्ध भी है।
भ्रम फैलाया जाता है कि भारत का इतिहास मिथक आधारित है । यह देश गरीब, अशिक्षित और कृषि प्रधान ही रहा । भारत अंधविश्वासी है, रूढ़िवादी और पुराणपंथी है, परंतु वास्तव में भारत एक प्राचीन राष्ट्र है। भारत का इतिहास मिथक नहीं बल्कि सैकड़ों वर्षों का गौरवशाली, जीवित इतिहास है। हमारी भौगोलिक राष्ट्रीयता – जंबूद्वीप, भरतखंड, भारतवर्ष, आर्यावर्त-ब्रह्मावर्त आदि नामों से सहस्त्रों वर्षों से उल्लेखित है। हमारे शास्त्रों में, त्रिपिटक में, जातक कथाओं, प्राचीन ग्रंथों में सबमें भारत को राष्ट्र की संज्ञा के साथ वर्णन हैं। यजुर्वेद (9/23) में ‘वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिता’ का उल्लेख हैं। लगभग 2500 वर्ष पूर्व तो आदि शंकराचार्य ने ही भारतवर्ष का भ्रमण कर चार मठों की स्थापना की। हमारा देश भू-सांस्कृतिक इकाई है। हमने धरती को मां माना है। कोई भी विदेशी आक्रमण किसी भी हिस्से में हुआ, हमने उसे भारत पर आक्रमण माना। कभी मिलकर लड़े कभी नहीं लड़ पाए । आवश्यकता अनुसार राज्य का स्वरूप बदलता रहा। हमारी लिविंग हिस्ट्री है। हमारे यहां जोड़ने वाली बात है वह है भारत को माता मानना।
भारत सैंकड़ों वर्षों तक उत्पादन व व्यापार में विश्व में प्रथम स्थान पर है। भारत गरीब, अशिक्षित नहीं बल्कि ज्ञान विज्ञान से परिपूर्ण और समृद्ध रहा। 32 देशों की संस्था OECD के हाल के अध्ययन में पाया गया कि सन 1 से लेकर 1700 तक 27% से भी अधिक के साथ भारत की जीडीपी दुनियाँ में सर्वप्रथम रही। इस रिपोर्ट को प्रसिद्ध अंग्रेजी अर्थशास्त्री Angus Madisson ने प्रकाशित किया । स्वतः सिद्ध है कि ज्ञान विज्ञान के बिना यह संभव नहीं ।
भारत की निरंतरता के कारण हमारे यहां ज्ञान का प्रवाह है। उद्योग, उत्पादन, व्यापार, भारत में सब होता था। सिंध से बंगाल की खाड़ी तक सारे बंदरगाह भारत के थे। 2200 वर्ष पहले के एटलस में यह उल्लेख हैं। दुनिया के सब देशों के साथ भारत का व्यापार था। भारत राष्ट्र का वैभव किसी एक क्षेत्र में नहीं था। उद्योग, उत्पादन, व्यापार, ज्ञान हर क्षेत्र में हम उन्नति थे।
संविधान में भी राष्ट्र की एकता और अखंडता को सर्वोच्च माना गया है। एकता व अखंडता पर कोई समझौता संभव नहीं। भारत की एकता व अखंडता संविधान में व्यक्तिगत अधिकारों से ऊपर है । त्यजेद एकं कुलस्यार्थे, ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत…..। प्रत्येक व्यक्ति/नागरिक का राष्ट्र से संबंध, मौलिक अधिकारों के साथ मौलिक कर्तव्यों की संकल्पना । भारत संघ (Union) से बाहर जाने का किसी भी राज्य को अधिकार नहीं। नए राज्यों का निर्माण तो संभव है पर कोई क्षेत्र विलग नहीं हो सकता। राष्ट्र की एकता-अखंडता सर्वोपरि।
भारत की भावात्मक एकात्मता स्पष्ट है – एक ध्येय, समान जीवन मूल्य, एक समान संस्कृति, मानबिंदु, गौरवस्थान, जय-पराजय सामूहिक रहे। सभी भाषा, मत-पंथों में मूल्य और भाव एक जैसे हैं।
हमारे यहाँ विविधता का सम्मान हैं। विविधता में एकता नहीं, बल्कि एक ही विविध रूप में अभिव्यक्त हुआ हैं । एकं सद विप्रा, सर्वे भवंतु सुखिनः संयम, करुणा, दया, क्षमा हमारा चरित्र है। सब हमारे हैं। यह हमारे मूल्य हैं। इसके आधार पर हमारे समाज जीवन की रचना हुई। यह धरती सब की है। आदमी, पशु, पक्षी, कीट, पतंगे सबका इस पर अधिकार है। हम प्रकृति से अलग नहीं बल्कि उसका ही एक हिस्सा है। अद्वैत, वासुदेव सर्वं, सर्वं खलु इदं ब्रह्म, एकात्म मानवदर्शन आदि विविध सिद्धांत इसी एक सत्य को अभिव्यक्त करते है।