भारत के वैभवशाली और गौरवशाली इतिहास का यह एक लंबा कालखंड है, तो उसके साथ-साथ परतंत्रता का भी एक हजार वर्ष का काला अध्याय है। विदेशी आक्रमणों व संघर्षों के शिकार होने के कारण हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, वैज्ञानिक, राजनीतिक व्यवस्था एवं शिक्षा प्रणाली पर गहरी चोटे पहुंची या यूं कह सकते हैं कि योजना पूर्वक पहुंचाई गई। एक लंबे संघर्ष काल के बाद हम स्वाधीन हुए। स्वाधीनता के साथ कोई भी देश अपने स्व के आधार पर अपना पुर्ननिर्माण करता है एवं गुलामी के प्रत्येक चिन्ह का समूल नाश करता है। परंतु हमारे स्व का ऐसा लोप हुआ कि हमने गुलामी के सारे प्रतीको को संभाल कर रखा।
जब स्व के गौरव वाला समाज बनता है तो धीरे-धीरे देश के नेतृत्व एवं समाज समूह में भी सोच बदलती है। हमने पिछले कुछ वर्षों में देखा कि जो काम स्वाधीनता के समय होना चाहिए था वह
अब हो रहा है।
आज बम्बई से मुंबई बना, मद्रास से चेन्नई बना, फैजाबाद पुनः अयोध्या बन गया। इलाहाबाद फिर प्रयागराज के रूप में पहचाना जाने लगा। मुगलसराय, दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन बन गया। मेरठ का बेगम पुल चौक अब भारत माता चौक बन गया, अभी अभी हमारे सामने राजपथ कर्तव्य पथ बन गया। जॉर्ज पंचम की मूर्ति हटाकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लग गई। अंग्रेजों द्वारा निर्मित संसद भवन से अब हमारा अपना नया संसद भवन बना और उसमें राष्ट्रीय गौरव एवं हमारी विरासत का प्रतीक संगोल यानी धर्म दंड – राजदंड वेद मंत्रों के साथ स्थापित किया गया। उस समय ऐसा मनमोहक दृश्य था जैसा शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव को दिखाई दिया। आज राष्ट्रनायकों के नाम पर विभिन्न स्थानों का नामकरण कर उन्हे गौरव दिया जा रहा है।